आज शाहीन बाग़ एक ज्वलंत मुद्दा है हर एक राजनीतिक पार्टी इसको भुनाने के लिए तैयार बैठी है अगर ये कहा जाए कि विपक्ष जो बिगत 6 वर्षों से बेरोजगार बैठा था ,वो इसे अपने रोजगार के रूप में देख रहा हो .मुस्लिम महिलाएं 67 दिन से शाहीन बाग़ में धरना प्रदर्शन के लिए मुद्दाविहीन बिना सोचे समझे बैठ तो गई कुछ लोगों की सियासत की बिसात पर लेकिन उन्हें समझ आ नहीं रहा वो इसे कैसे ख़तम करे . अगर सही मुद्दों पर धरना होता तो सरकार कुछ संवाद करती लेकिन ये धरना मुद्दाविहीन है क्यों एन आर सी अभी आया नहीं है और सी ए ए का इंडियन मुस्लिम की नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं डालता है
अब सवाल ये है कि मुस्लिम समाज मुस्लिम महिलाओं के कंधे पर बंदूक चला कर हासिल क्या करना चाहता है ?
अगर शाहीन बाग़ वाली महिलाएं धरना प्रदर्शन करना ही चाहती थी वाजिब मुद्दे के साथ तो जंतर मंतर ये रामलीला मैदान पर जा कर सकती थी क्यों शाहीन बाग़ ही चुना ?
शाहीन बाग़ चुनने का एक मात्र कारण ये था कि जो इससे प्रॉब्लम होगी उससे आम लोग प्रभावित होंगे और वो इसका विरोध करने जब सड़क पर उतरेंगे तो दिल्ली की कानून व्यवस्था प्रभावित होगी जिससे वो अपने मकसद में कामयाब होंगे , लेकिन ऐसा हो नहीं पाया ना सरकार ने बात की ना ही किसी हिन्दू संगठन ने कोई एग्रेसिव कदम उठाया
इस निराशा दुखी हो कर दिल्ली के दूसरे स्थानों पर उग्र प्रदर्शन के लिए मुस्लिम महिलाओं को उतारा गया सी ए ए के विरोध के लिए लेकिन इस बार मकसद में कामयाब हो गए कुछ सी ए ए समर्थन वाले लोगों ने भी प्रदर्शन किया ,
इससे हिंसा भड़क उठी दिल्ली में और आई बी आफिसर अंकित शर्मा की हत्या हो गई और इसमें ताहिर हुसैन जो की आप पार्टी का पार्षद था आरोपी बना जो अब तक फरार है जिसके घर की छत पर पत्थर , गुलेल ओर पेट्रोल बम मिले जिससे ये साबित हो रहा था कि ये हिंसा सुनियोजित ढंग से रची गई थी और बेकसूर 43 लोग मारे गए
इस घटना के बाद क्या शाहीन बाग़ विवाद के घेरे में आ गया है क्योंकि इतनी बड़ी भीड़ जो बिना नेतृत्व के मुद्दाविहीन बैठी है किसी भी वक्त कोई भी बड़ा रूप ले सकती है ,दिल्ली पुलिस ने धारा 144 लागू की है किसी भी आने वाली दुखद घटना से निबटने के लिए
अगर शाहीन बाग़ में कुछ दुखद होता है तो क्या मुस्लिम समाज इसकी जिम्मेदारी लेगा ? क्या मुद्दाविहीन सड़कों पर प्रदर्शन जायज़ है ? क्या शाहीन बाग़ के स्थानीय लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इस शाहीन बाग़ के प्रदर्शन से होने वाली परेशानी को एक लंबे वक़्त तक सहन कर पाएंगे ?
कहीं ये शाहीन बाग़ का सी ए ए के खिलाफ प्रदर्शन किसी आने वाली हिंसा को न्योता ना दे दे, और ये शाहीन बाग़ के पीछे बैठ कुछ असामाजिक लोग अपने काले मंसूबों में कामयाब ना हो जाए ,दिल्ली पुलिस और न्याय पालिका को इस नजायज धरने से आम लोगों को आने जाने में होने वाली समस्या को देखते हुए इसे हटाना चाहिए
क्योंकि सड़क पर दंगा फसाद कर के आम लोगों की रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करना लोकतंत्र में धरना प्रदर्शन नहीं कहलाता है और ना ही लोकतंत्र की जड़ को मजबूत बनाता है
हमे अगर एक मजबूत लोकतंत्र की ओर बढ़ना है तो ऐसे काले शाहीन बागों को पनपने से पहले ख़तम करना होगा
जिससे श्रेष्ठ भारतवर्ष का निर्माण होगा
शैलेन्द्र शुक्ला “हालदौन”