इतना क्यों तुम डरते हो बिजली क्यों नहीं बनते हो
दुश्मन पर चमक चमक कर गिरना तुम
जो हो मन का काला उसे राख कर देना तुम
इतना क्यों तुम डरते हो बिजली क्यों नहीं बनते हो
इतना क्यों तुम डरते हो दरिया क्यों नहीं बनते हो
बिना रुके और बिना थमे आगे बढ़ना तुम
जो जैसे स्वीकारे उसी रूप में ढलना तुम
जो कोई बाधा पहुंचाए हुंकार भरना तुम
इतना क्यों तुम डरते हो दरिया क्यों नहीं बनते हो
शैलेन्द्र शुक्ला हल्दौना
Bahut sahi
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Thanks
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Nice
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Thanks
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Pls add some more poems
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Sure,will do
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Write on festival
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Sure ,will do
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Thanks
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Welcome Haldauna.com
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bahut khub
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Aapka abhari hu
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