कश्मीर पंडितों की की चीखों में क्या क्रंदन नहीं था
क्या हिन्दू बहू बेटियों को आवाज में रुदन नहीं था
असहाय बच्चों की तड़पन में क्या अज़ाब नहीं था
फिर क्यों ख़ामोश सरकार सोती रही
खुलेआम इंसानियत कतल होती रही
कश्मीरी पंडितों ने क्या धरती को सींचा नहीं था
पुरखों ने हमारे क्या इसको संजोया नहीं था
निर्दोष बच्चों का तो किसी से इनाद भी नहीं था
फिर क्यों ख़ामोश सरकार सोती रही
खुलेआम इंसानियत कतल होती रही
मासूमों को जिंदा जला देना आदिल तो नहीं था
किसी का आशियाना उजाड़ देना उरूज तो नहीं था
क्या मां की अस्मत नोचना बलात्कार नहीं था
फिर क्यों ख़ामोश सरकार सोती रही
खुलेआम इंसानियत कतल होती रही
शैलेन्द्र शुक्ला “हलदौना”
कठिन शब्द —
आदिल = न्यायपूर्ण,अज़ाब = पीड़ा,
इनाद = दुश्मनी, शत्रुता, वैर,
उरूज = महानता, गौरवान्वित