क्यों जिये जा रहा हूं इल्म नही मुझको
पर हां में उठ जाता हूं सुबह वक्त पर
मंजिल की कोई खबर नहीं है मुझको
पर हां रुकता नही कहीं भी पल भर
शामिल नहीं करता वो किसी बात में मुझको
लेकिन साथ नहीं छोड़ता उसका क्षण भर
कल क्या होगा जिंदगी का पता नही मुझको
तसव्वुर जिंदा रखता हूं चाहे मौत हो आस्ताँ पर
शैलेंद्र शुक्ला ” हलदौना”
इल्म= ज्ञान, जानकारी
तसव्वुर= कल्पना ,ख्वाब
आस्ताँ = चोखट,दहलीज